परोपकार ही जीवन काय सबसे बड़ा धर्म है

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सीतापुर। जो समाज की सेवा में खुद को मिटा देते हैं वे ही प्रभु के प्रिय भक्त होते हैं। इतिहास में उनका नाम अमर हो जाता है। यदि हम प्रभु की कृपा के पात्र बनना चाहते हैं तो हमें परमात्मा की बनाई प्रत्येक रचना से प्यार करना होगा। सभी जीवों के प्रति परोकार की भावना ही मनुष्यता की पहचान है।
यह बातें नैमिषाराय्ण स्थित अपने कार्यालय  में चल रहे सत्संग मे शनिवार को व्यास पीठाधीश्वर श्री अनिल कुमार शास्त्री जी ने कहीं। उन्होंने कहा कि दूसरे जीवों या मनुष्यों को पीड़ा देकर हम सुखी नहीं हो सकते हैं। हिंसा को शास्त्रों में अधर्म की उपाधि दी गई है। अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है। यही सबसे बड़ी पूजा है। एक ओर भक्ति के नाम पर कुछ रीति रिवाजों व परंपराओं का निर्वहन हम करते जा रहे हैं तो दूसरी तरफ मानवीय गुणों से हीन होकर पर पीड़ाए हिंसाए वासनाओं के अधीन होकर कुकृत्य करते चले जा रहे हैं। अध्यात्म एक नियुक्ति है जिसके द्वारा इंसान अपनी हिंसक वृत्तियों पर अंकुश लगा सकता है। अध्यात्म मन को वश में करने का एक सशक्त साधन है। अध्यात्म एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें ब्रह्मज्ञान की दीक्षा के द्वारा एक पूर्ण संत हमारे भीतर के सुप्त शक्तियों को जागृत करता है। उन्हें एक सकारात्मक दिशा प्रदान करता है।
 इस दौरान स्वामी गोपेश्वरानन्द जी महाराज ने कहा कि जल, पृथ्वी, आकाश, वायु और अग्नि इन पांच तत्वों से बने इस शरीर में काम, क्रोध, मद, मोह और लोभ विकार स्वतः ही उत्पन्न होते रहते हैं। अगर मनुष्य अपने जीवन से अहंकार को निकाल दे तो सारा संसार हमारा हो जाए।  परोपकार सबसे बड़ा धर्म है लेकिन दूसरों का उपकार स्वार्थ रहित होना चाहिए इसमें प्रेम, भक्ति, ज्ञान, वैराग्य सभी कूट-कूट कर भरे हैं। इसके श्रवण मात्र से परम मंगल व परम कल्याण होता है।सूर्य नदी पोखर तालाब सरोवर मानसरोवर यहां तक की सागर जो जल संग्रह कर अपने ही पेट में छिपाए रहते हैं उनसे मांग लाता है वह चाहे अपनी इच्छा से दे या जबरदस्ती उन्हें तपाकर लाना पेड ले आता है बादल बनकर प्यासी धरती वनस्पति सभी जीव धारियों को तृप्त कर प्राण रक्षा किया करते हैं यही परोपकार है इसी तरह व्यास पीठाधीश्वर श्री अनिल शास्त्री वेद व्यास के साक्षात अवतार कर करते आ रहे हैं आज भी जब इस संकटकालीन घड़ी में भूखे प्यासे भटक रहे वह हजारों लोगों की सेवा कर रहे हैं भोजन वस्त्र ही नहीं उनके जीवन यापन हेतु धन आदि देकर उनकी रक्षा कर रहे हैं वेद पुराण भारतीय संस्कृति के रक्षक विद्वानों की संरक्षकता में अहनिशि जुड़े हुए हैं स्वंय कितना अपने शरीर रक्षा के लिए उपभोग करते होंगे मात्र शरीर रक्षा भर को अपने पर लगा पाते होंगे । पता नहीं कहां कहां से लाकर सब की चिंता में सेवा में जुटे हैं अपने को ज्ञानी  भक्त महान महापुरुष बनने की इच्छा वाले स्वकेन्द्रित मान संम्मान,सुख वैभव की इच्छा  छोड़ यदि लोक संग्रह जनता जनार्दन की सेवा करते हैं तो कितना अच्छा होता इस दौरान स्वामी गोपेश्वरानन्द जी महराज स्वामी पवन जीत पंकज भारतीय शशिकान्त शुक्ला,कपिल शास्त्री आदि लोग उपस्थित थे।

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