*सीमांत किसानो को अपनाना होगा गौ आधारित प्राकृतिक खेती*
शशिकांत शुक्ला
बिसवॉ सीतापुर।कृषि विज्ञान केन्द्र कटिया सीतापुर द्वारा विकास खण्ड लहरपुर के केसरीगंज में प्राकृतिक खेती पर दो दिवसीय प्रषिक्षण का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डा0 दया शंकर श्रीवास्तव ने प्राकृतिक खेती पर जानकारी देते हुए बताया कि प्राकृतिक खेती प्रकृति के पुर्नचक्रण व पर्यावरण पुर्नस्थापन के लिए आज की स्थिति को देखते हुए अत्यंत आवश्यक है, प्राकृतिक पद्धति का आशय प्राकृतिक विज्ञान से है जिसमे प्राकृतिक संसाधनों से गुणवत्तापूर्ण उत्पादन किया जा सके। वर्तमान स्थिति में प्राकृतिक खेती अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह खेती उत्पादन की लागत को न्यूनतम करता है। इसमें किसी भी प्रकार के रसायनिक उर्वरको एवं कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता है, इसलिये प्राकृतिक कृषि बेहतर स्वास्थ्य को सुनिश्चित करती है साथ ही जल की खपत को न्यूनतम किया जा सकता है। प्राकृतिक खेती में किसी भी प्रकार का रसायनिक व अन्य अवयव नही डालना है, केवल देशी गाय की सहायता से आप इस खेती को कर सकते हैं प्राकृतिक खेती में कीट व बीमारियों से बचाव फसल सुरक्षा के लिए नीमास्त्र, ब्रह्मस्त्र, अग्नेयास्त्र व दशपर्णी अर्क आदि का प्रयोग किया जाता हैं। केन्द्र के मृदा वैज्ञानिक श्री सचिन प्रताप तोमर ने प्राकृतिक कृषि मुख्य रूप से 4 स्तंभों पर आधारित है जीवामृत, बीजामृत, मल्चिंग एवं वाफासा आदि हैं। जीवामृत गाय के गोबर और मूत्र, गुड़, दालों के आटे, पानी और उपजाऊ खेत की मिट्टी का किण्वित मिश्रण द्वारा तैयार किया जाता हैं। बीजामृत देसी गाय के गोबर और मूत्र, पानी, उपजाऊ खेत मिट्टी और चूने का मिश्रण एवं मल्चिंग, या सूखे भूसे या गिरे हुए पत्तों की एक परत के साथ पौधों को ढंकना, मिट्टी की नमी को संरक्षित करने और जड़ों के आसपास के तापमान को 25-32 डिग्री सेल्सियस पर रखता है। केन्द्र के प्रसार वैज्ञानिक श्री शैलेन्द्र कुमार सिंह ने प्राकृतिक खेती पर जानकारर देते हुए बताया कि प्राकृतिक खेतों को बढ़ावा देने का मुख्य कारण किसानों को रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से होने वाले नुकसानों से बचाना है। यदि किसान दो से तीन एकड़ जमीन पर गेहूं और अन्य फसलों का उत्पादन करेगा तो स्वयं को बीमारियों से बचाकर रख सकता है। क्योंकि रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से कैंसर, हृदयरोग, दमा आदि गंभीर बीमारियों का प्रकोप बढ़ रहा है। इनसे लोगों को बचाने के लिए सरकार किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ने का प्रयास कर रही है। प्रषिक्षण कार्यक्रम में कुल 56 कृषकों ने प्रतिभाग किया।
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